Monday, March 30, 2009

Baat niklegi toh ...

Another masterpiece. Heard this today on a road trip across the countryside. Though I had heard and used the first line of this nazm so many times in the past, it was only today that I finally got a chance to hear it completely.

The beauty of this one is that it comes to me at a time when the lyrics are almost so relevant. Well, I could say that about any urdu piece but this one touched my heart today.

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी ...

लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे,
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो ...

उगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़,
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़ ...

चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे,
कांपते हाथों पे भी फिक़रे कसे जायेंगे ...

लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे,
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे ...

उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना,
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे,
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे,
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे ...

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी ...

‍-कफ़ील आज़र

Glossary
तलक : Till
सबब : Cause
तन्ज़ : Taunt
फ़िकरे : Jibes
तासुर : Expression

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