माना कि गूँज रहे थे सन्नाटे,
माना चीख रही थी खामोशियाँ,
जब आह भरी थी हम ने, तब न सही ...
पर जब दिल चटखा था, तब एक आवाज़ सी तो तुमको आयी ही होगी।
माना कि उदास थी बहार,
माना खामोश था यह चहचहाता आँगन,
सूनी गलियों मे छुप रहे घुप्प अँधेरे में ही सही ...
मेरी एकाकी ने अपनी एक झलक तुमको चुपके से दिखलाई ही होगी।
माना चुप्पी लगी थी इस ओर भी उस ओर भी,
माना भरोसे की किल्लत थी इस ओर भी उस ओर भी,
यह भी मान लिया दोनों ही का अहम बड़ा था, लेकिन ...
इन दूरियों ने तुमको एक दीदार की गुहार तो लगायी ही होगी।
माना कि सपना टूट गया,
माना कि रिश्ता छूट गया,
पर यह तो आज भी कबूल नहीं कि थे तुम बेवफा ...
हमारी ही वफा ने तुमको शायद कोई कमी जतलायी होगी।
umr-e-daraaz maang ke laaye the char din;
ReplyDeletedo aarzoo mein kat gaye, do intezaar mein.
Aur ek aap hain, nayee nagmein likenge nahin to aapke kadardaan padheinge kya?
--aapka kadardaan
arre kadradaan miyan,
ReplyDeletemuafi chahte hain, jald se jald hi aapki iss shiqaayat ko fanaa kar denge. tab tak do din intezaar mein hi kaatiye ... :)
--aapka mezbaan
baap re, sahi tha be :)
ReplyDeletevery nice one :)
makes me wanna write again :)
last two lines zara hindi ke wajah se samajh nahi aaye :(
bataiyo plz mail karke
piya tora kaisa abhimaan...
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