Wednesday, September 10, 2008

Kaka Hathrasi

Vinod has recently started a blog on Kaka Hathrasi's creations. Here's my (literal) two cents ... two compositions as my personal tribute to Kaka's legacy, in his signature style.

The first one was written during the Hindu festival of Karva-Chauth in 2007. Picking up from the usual Kaka-Kaki nok-jhonk, here's how it goes ...
काका से काकी कहिन , हमारा खूब बनाया मेल,
मैं भी खेलूंगी इस बार करवा-चौथ का खेल।
करवा-चौथ का खेल, रखूँगी मैं उपवास,
उम्र तुम्हारी लम्बी हो, जेहि है मेरी आस।
सुनते ही काका की बुद्धि ऐसी चकराई,
सज़ा-टाइम की EXTENSION भला किसी को भायी?
कहे काका कविराय हाथ यूँ जोड़कर, “काकी,
इतना जीवन कम था क्या, कुछ कसार रह गई बाकी?”

... and the next one struck me on the day I got to know about this blog. Here's how that one sounds like,
एक हमारे बन्धु भये, उनका नाम विनोद,
काका की कवितायें वो नित दिन, लायें खोद खोद।
लायें खोद खोद, करें हम उनसे विनती,
अपने रचनाओं की भी, कभी करो भाई गिनती।
कहीं काका कविराय मजा तोह तब आवेगा,
ब्लागस्पाट.कॉम जब दद्दू-गीत गावेगा।

Here's a hick-a-doo to Kaka Hathrasi, the nuffiest poet known to man.
Hickkk-A-Diddle-Dooooo!!!